Sunday, 28 February 2010

मेरी छोटी सी होली की कविता


कुछ रंग हो, कुछ भंग हो,
और अपनों का संग हो....
अबीर-गुलाल और गुझियों वाली,
आपकी होली रंगारंग हो।

4 comments:

  1. कुछ रंग हो, कुछ भंग हो,
    और अपनों का संग हो....
    अबीर-गुलाल और गुझियों वाली,
    आपकी होली रंगारंग हो।

    अपनों का संग हो यह लगाववादी बात अच्छी लगी।
    होली के विषय में कुमार कौतुहल लिखते हैं

    बुरा न मानो होली है

    काम नेक ये कर बैठी
    नाम एक से कर बैठी
    सबकी सब पहचान मिटी
    आनोबानोशान मिटी
    लेकर सभी गुलाल चले
    सब मिट्टी के लाल चले
    किसने कितने गाल मले ?
    सबमें यही सवाल चले
    होली हंसी ठिठौली है
    बुरा न मानो होली है
    to read more search in google Kumar koutuhal.
    If you are interested in ghazal visit me..
    http://kumarzahid.blogspot.com

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  2. thnks..... n thnks for the beautiful poetry as well.

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