Wednesday, 10 June 2015

चंदा का स्कूल

मां के बगल में बैठी चंदा ट्रेन की खिड़की से पीछे जाते हुए पेड़ों को देख रही थी। क्या ये पेड़ भी हमारी तरह चलते हैं? उसने मन ही मन सोचा। और चलते हैं तो जाते कहाँ हैं? क्या उनका भी कोई अॉफ़िस होगा जहाँ सारे पेड़ मिलकर तय करते होंगे कि इस बार कौन सा फल उगाएंगे। काश वो भी उनके साथ जा पाती और उनसे कह पाती कि उसे आम बहुत पसंद हैं और वो पूरे साल आम उगाएं।

चंदा ये सब सोच ही रही थी कि तभी उसे एक चिड़िया नज़र आई, पूरी ताकत के साथ उड़ते हुए जैसे कहीं पहुँचने की जल्दी में हो। जैसे कोई ट्रेन छूटने वाली हो।और वो तितली जो अभी खिड़की के बाहर ट्रेन के साथ-साथ उड़ रही थी, क्या वो अगले स्टेशन पर सबकी तरह झट से ट्रेन में चढ़ पाएगी? एक बादल भी चल रहा था साथ-साथ। नीले आसमान की बड़ी सी प्लेट पर रखा बादल चंदा को बिल्कुल उसकी मनपसंद इक्कीम (आइसक्रीम) जैसा लगा, सफ़ेद और गुदगुदा। मन किया कि चम्मच लेकर चख ले थोड़ा सा। पर अभी नहीं, अभी तो वो स्कूल जा रही थी और सोच रही थी कि काश ये पेड़, ये चिड़िया, ये तितली और ये बादल भी उसके साथ चल पाते।

2 comments:

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